Saturday, October 2, 2010

चच्चा चंगू के क़िस्से

चच्चा चंगू का जन्म कब हुआ इस बारे में इतिहास के पन्नों में कुछ नहीं मिलता. चच्चा को भी नहीं पता. केवल इतना बताते हैं कि यह घटना कोई 1925-30 के आस पास की है जब चच्चा ने इस दुनिया में पहली चीख मारी. जब से वह बराबर चीख चिल्ला रहे हैं.चच्चा बताते हैं कि भारत की आज़ादी के समय वह नौजवान थे. आज़ादी के लिये होने वाले जलसे जलूसों में भाग लेते थे. लाठियां खाने की हिम्मत नहीं थी इस्लिये राजनीति से दूर ही रहे. उन्होंने एक ज़माना देखा है. बातें बनाना खूब जानते हैं पुराने किस्से चटखारे लेकर सुनाते हैं.


चच्चा की आदत है बोलना और बोलते रहना. कोई सुने न सुने उनका काम है सुनाना. जब बोलते हैं तो दूसरे को मौका नहीं देते. उनका आउट लूक ज़रा पुराना है. कभी कभी लोग नाराज़ भी हो जाते हैं कि क्या फ़ाल्तू बक बक करते हो लेकिन चच्चा आदत से मजबूर हैं. ज़रा सुनिए चच्चा क्या कह्ते हैं:


एक लकड़ी पुरानी सी


एक दिन चच्चा को पुरानी यादों की धुन सवार थी बोले: लार्ड पापकार्न का सोंटा भी क्या सोंटा था. पता नहीं यह सोंटा लार्ड पापकार्न को कहां से मिला था. हो सकता है कि बाज़नतीनी अफ़सरों से हाथ लगा हो जो 1453 में कुस्तुनतुनिया के पतन के बाद लंदन में बस गये थे.


मैंने चच्चा से पूछा कि लार्ड पापकार्न भारत के कौथे लार्ड थे? (किस लार्ड के पहले या बाद उनका नाम आता है) तो चच्चा ने साफ़ कह दिया कि पता नहीं. बोले मैं कोई इतिहासकार तो हूं नहीं. मैं तुम्हें आंखों देखी और कानों सुनी सुनाता हूं और तुम हो कि इतिहास के पन्ने पलटने बैठ जाते हो. मैंने लार्ड पापकार्न को खुद देखा है. बहुत लम्बे से थे. गोरा लाल रंग, पतला लम्बा चेहरा, मूंछें साफ़ और हाथ में एक बडा सा सोंटा.


लार्ड पापकार्न के कुछ बडे लोगों से अच्छे ताल्लुकात थे जैसे नवाब खशखशी, मशहूर बैरिस्टर टी.टी. बोरीवाला और उस ज़माने के बार बार मार खाने और जेल जाने वाले नेता गोलू धरपकड. लार्ड पापकार्न इन सभी की बडी इज़्ज़त करते थे. एक बार चच्चा नेता जी के साथ जो ताज़े ताज़े जेल से छूटे थे लार्ड से मिलने गये. गेट पर सन्त्री ने रोका तो नेता जी ने कहा - कह दो लार्ड साहब से जाकर कि नेता जी गोलू धरपकड आये हैं जो कल ही आप के हुक्म से जेल से रिहा हुए हैं.


सन्त्री लार्ड को बताने के लिये गेट छोडकर आगे बढा और नेता जी पीछे चले. उनके पीछे अपने चच्चा थे. सन्त्री ने एक बार घूर कर नेता जी को देखा लेकिन नेता जी ने परवाह नहीं की. अभी वह लार्ड के बंगले में सामने बरामदे तक पहुंच पाये होंगे कि जाने कहां से चार पांच मोटे मोटे डंडाधारी सिपाही निकल पडे और लगे नेता जी को लठियाने. चच्चा पीछे थे वह तो कूदकर गेट के बाहर हुए. नेता जी फ़ाल्तू पिट गये.


मार धाड की आवाज़ सुनकर लार्ड ने बंगले की खिडकी में से झांका. एक निहत्ते आदमी पर यह आत्याचार देखकर वह बेचैन हो गया. उसने सिपाहियों को डांटकर नेता जी को बचाया. नेता जी चोटें सहलाते और धूल झाड़्ते हुए उठकर खड़े हुए. नेता जी की बात सुनकर उसने एक स्लिप लिखकर दी कि जब मिलना हो यह स्लिप सन्त्री को देकर बाहर इन्तिज़ार करो.


नेता जी भी धुन के पक्के थे. फ़ौरन घर आये. चोटों और धूल को साफ़ किय. पुराना इस्त्री किय हुआ कुर्ता पाजामा पहन कर फिर जाने के लिये तैयर हो गये. चच्चा जाने को राज़ी नहीं थे क्योंकि एक बार हश्र देख चुके थे.


नेता जी ने समझाया कि ऐसी छोटी मोटी चीज़ों से हार जाओगे तो देश आगे कैसे बढेगा. मैं बहुत चोटें खा चुका हूं. सिपाहियों को लार्ड ने ट्रेनिंग अच्छी दी है. इतनी बार मारा, कभी जेल में, कभी जल्से जलूस में लेकिन कभी हड्डी नहीं टूटी. पता नहीं कैसा वार करते हैं कि चोट तो खूब लगती है मगर खून भी नहीं निकलता. अगर खून निकल आया तो समझो सिपाही की नौकरी गयी. पापकार्न का डिसिप्लिन बहुत सख्त है. यही तो खूबी है.


चच्चा बोले हमें पिटना नहीं है. अगर पिट गये तो लार्ड से ताल्लुकात का क्या फ़ायदा? ऐसा तो नवाब खशखशी के नौकर भी नहीं करते. मैं कई दफ़ा नवाब साहब से मिल चुका हूं. नेता जी ने कहा: तुम नहीं जानते, यह देसी नवाब अंग्रेज़ी तौर तरीके क्या जानें. उनका डिसिप्लिन अच्छा नहीं है जभी तो नवाबी हाथ से निकल रही है. खुश हो गये तो पूछ बैठे "मांग क्या मांगता है" उसने हुकूमत मांग ली तो खुशी खुशी देदी और खुद निकल गये जंगलों की तरफ़. यह भी नहीं सोचा कि बच्चे क्या खाएंगे.





चच्चा बोले मुझे पता नहीं था कि बैटन क्या होता है. नेता जी से शर्म के मारे नहीं पूछा. वह कहते तुम्हें इतना भी नहीं पता. जब स्कूल में फ़ंक्शन हुआ, चार वर्दीधारी जिनके कोट और टोपियां लाल थीं एक छडी लेकर आये. यह एक काली सी पुरानी लकड़ी थी.....

चच्चा बे-दिली से दोबारा नेता जी के साथ बंगले पर गये. नेता जी ने स्लिप आगे बढाई. सन्त्री स्लिप लेकर अंदर गया. दोनों गेट पर खडे रहे. लगभग एक घंटे से बाद सन्त्री वापस आया और दोनों को अंदर चलने का इशारा किया. बरामदे में ले जाकर उसने मोढों पर बैठने को कहा और बताया कि साहब नाश्ता करता है अभी इन्तिज़ार करने को बोला.


चच्चा की जान में जान आयी. खडे खडे टांगें दर्द करने लगीं थीं. बैठने को मिला तो बंगले में इधर उधर नज़रें दौडाने लगे. वीराने में क्या खूबसूरत बंगला है. दूर दूर तक फूल खिले हैं. सन्त्री अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद हैं. एक सन्नाटा सा पसरा है. बिना इजाज़त कोई कान तक नहीं हिलाता.


आखिर तलबी का वक्त आ गया. दोनों अंदर गये और लार्ड पापकार्न को झुक झुक कर फ़र्शी सलाम किये. "साहब का इकबाल बुलंद रहे."


लार्ड ऊंची कुर्सी पर विराजमान था. नेता जी ने कहा " हज़ूर स्कूल में सालाना फ़ंक्शन हो रहा है. आप की तशरीफ़ आ जाये तो बडी मेहरबानी"


लार्ड बोला " हम देसी स्कूल में नहीं जाता. हम तुम्हारा रेक्वेस्ट पर अपना बैटन देदेगा."


नेता जी ने सर झुका दिया.


वापसी पर नेता जी बहुत खुश थे. बोले यह हैं उसूलों वाले शासक. देसी स्कूल में नहीं जाते हैं तो अपना बैटन दे दिया. अगर मेरी इतनी पहुंच न होती तो बैटन नहीं मिलता. बैटन पहले ज़िले में घूमेगा फिर स्कूल में आयेगा. सालाना फ़ंक्शन की शुरुआत इसी से होगी.


चच्चा बोले मुझे पता नहीं था कि बैटन क्या होता है. नेता जी से शर्म के मारे नहीं पूछा. वह कहते तुम्हें इतना भी नहीं पता. जब स्कूल में फ़ंक्शन हुआ, चार वर्दीधारी जिनके कोट और टोपियां लाल थीं एक छडी लेकर आये. यह एक काली सी पुरानी लकड़ी थी.......कुस्तुनतुनिया के ज़माने की. इस लकड़ी का बडा सम्मान किया गया. बडे नारे लगे कि लार्ड पापकार्न का बैटन आया. मैंने सोचा शायद इसी डंडे से पापकार्न का शासन चलता है. लेकिन यह लकडी अब पुरानी हो चुकी है, कब तक चलेगी...?

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