Wednesday, June 18, 2025

पतझड़ के मौसम


(1)

गली मोहल्ले में  

बच्चे खेलते थे कंचे 

नाक चुआते गंदे लड़के 

उड़ाते और लुटते थे पतंगें. 

घर के आंगन में 

नीम के पेड़ पर बैठकर

 कागा करता था कांव कांव 

गौरैयाँ और गिलहरियां 

छप्पर और खपरैल में 

बनाती थीं घोंसले. 

वो लू भरी दोपहरियाँ 

जब नाचते थे धूल के बवंडर 

बच्चे दौड़कर 

पकड़ते थे उसमें नाचते पत्ते. 

(2 )

वक्त गुज़रा ज़माना बदला 

बच्चे पढ़ लिखकर हुए बड़े 

खेत खलियान बिके 

बनीं कालोनियां और फैक्ट्रियां 

रोज़ी रोटी की चाहत 

कुछ बड़ा करने बड़ा बनने की लालसा 

इन्हें खींच ले गयी बाहर 

(3 )

अब उनके बच्चे 

आकाश से बातें करती 

इमारतों में रहते हैं 

न उनहोंने देखी है लू 

और न पतझड़ के मौसम 

वह तो बेचारे 

बारिश को भी अज़ाब समझते हैं. 





 

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