Monday, November 22, 2010

व्यस्तता

(1)

रात की तनहाई में
अपने ही मोबाइल पर
अपना नम्बर डायल करता हूं
आवाज़ आती है
"डायल किया गया नम्बर व्यस्त है,
थोड़ी देर बाद डायल करें"
मैं सोचता हूं
मेरे मोबाइल पर
इतनी रात गये
कौन बातें करता है ?

(2)

टेलीफ़ोन खराब है
रिंग करने वाले को
फ़ाल्स बेल सुनाई पड़ती है
वह सोचता है
कोई उठाता क्यों नहीं है
शायद व्यस्त है !

(3)

आप वयस्त हैं
काम से उकताये हुए हैं
बास पर झल्लाये हुए हैं
आफ़िस के बाहर
रेड लाइट है
चपरासी को सख्त हिदायत है
कोई अन्दर न आने पाये
अचानक !
टेलीफ़ोन की घन्टी बजती है
आप फ़ोन उठाते हैं
और ज़्यादा व्यस्त हो जाते हैं

Friday, November 12, 2010

धरती के लाल याद है तुम्हें ?

धरती के लाल !
याद है तुम्हें ?
हलागू और चंगेज़
सिकन्दर की उमड़ती फ़ौजें
तातारी बेलगाम घोड़े
मंगोलों के हमले
जिन्होंने सभ्याताऒं की
ईंट से ईंट बजा दी.

दिल्ली लुटी कई बार
कभी नादिर शाही कत्ले आम
कभी तैमूर की चढ़ाई
मराठों के हमले
गोरों की हुकूमत
1857 की क्रान्ति
दिल्ली की घेराबन्दी
आखरी मुग़ल का खात्मा

पहला विश्‍व युद्ध
बमों की बरसात
दूसरा विश्‍व युद्ध
हीरोशिमा और नागासाकी
फिर उठे मानवता के ठेकेदार
अब जंग न होने देंगे
इन्सानियत को बेवजह
शर्मसार न होने देंगे

दुनिया दो शक्‍तियों के घेरे में
अमेरिका और रूस
शीत युद्ध, जासूसी, प्रोपेगन्डा
रूस का बिखराव
दुनिया एक शक्‍ति की मुठ्ठी में
काले नकाब पोश चेहरे
आतंकवाद का साया
ट्विन टावर की तबाही

बिखरती मानवता की परछाईं
अफ़गानिस्तान के घाव
कैमिकत हथयारों की खोज
इराक़ का बिखराव
भूख से बिलखते बच्चे
मानवता का उपहास
ग्वान्टेनामो की कहानी
टार्चर का नया इतिहास

धरती के लाल
इन सबसे बेपरवाह
तुम अपने काम में लगे रहे
कारखानों में मशीनों पर
खेतों में, सडकों पर
तुम्हारे दो हाथ ही काम आते हैं
दुनिया को रोटी ही नहीं देते
इसे खूबसूरत भी बनाते हैं

धरती के लाल
हर बार तुम्हीं निशाना बने
ज़ुल्म करने वाले
हलागू या चंगेज़ हों
य़ा हिटलर और मसोलिनी
लाल सिपाही
मानवता के ठेकेदार
या बे चेहरा शक्‍तियां

कभी आतंकवाद के नाम पर
क्भी इन्सानियत के नाम पर
तुम्हीं क्यों पीसे जाते हो ?
धरती के लाल ??

Tuesday, November 2, 2010

न रहेगा आम, न कूकेगी कोयल

चच्चा बोले नवाब खशखशी के पास ग्रामोफ़ोन था जिस में रिकार्ड लगाकर वह गाने सुना करते थे.

नवाब खशखशी पुराने गानों के शौक़ीन थे. जब गाना सुनने बैठते थे क्या मजाल जो कोई ज़रा भी डिस्टर्ब कर दे. एक दिन बाग़ मे बैठे उस्ताद विलायत खां से पक्का गाना सुन रहे थे कि कोयल ने कूक मारी. उस्ताद विलायत खां पर उसका ऐसा असर हुआ कि गाना बन्द कर दिया और नवाब साहब से हाथ जोडकर कहा कि अब मुझ से नहीं गाया जायेगा.

नवाब ने पूछा क्यों ?

उस्ताद बोले कोयल की आवाज़ सुनकर मेरा गला रुन्ध गया है. एक पुरानी कहानी याद आ गयी है, एक कसक सी सीने में उठी है और एक आग है कि दिल को जला रही है.

नवाब के चेहरे पर कई रंग आये और गये. गुस्से से कांपने लगे. जब कांप चुके तो हांफने लगे. बोले एक ज़रा से परिन्दे की यह मजाल कि उस्ताद विलायत खां को पक्का गाना गाने से रोक दे. फ़ौरन बहेलिये को बुलवाया और कोयल को पकड़वा दिया. कुछ दिन बाद जब नवाब साहब को खबर मिली कि आम के बाग़ में कोयलों ने शोर मचा रक्खा है तो बाग़ कटवा कर बबूल का जंगल लगवा दिया कि न रहेगा आम, न कूकेगी कोयल !

चच्चा बोले वह दिन अब कहां. नवाब खशखशी चले गये उनके पोते अब चूना बेचते हैं और मोबाइल से गाने सुनते हैं. कल मैं टी वी देख रहा था. अच्छा प्रोग्राम चल रहा था लेकिन बीच बीच में सिलसिला टूट जाता था. साबुन, चाय, तेल, बेचने वाले, बिना भूख पिज़्ज़ा बर्गर खाने की सलाह देने वाले बिन बुलाये मेहमान की तरह घर में घुस पड़ते थे. यह सब देखकर मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा. मैंने सोचा न हुये नवाब साहब... तोड़ देते टी वी और फोड़ देते ऊपर लगी छतरी.....

कमाल की बात है, हम अपना पैसा दें. डिश वालों की जेबें भरें और ऊपर से अनचाहे एडवर्टाइज़मेन्ट झेलें. यह तो वही बात हुई कि हमारी बिल्ली हमीं से मियाऊं. टी वी वालों ने अच्छा धंधा चलाया है. अब बहुत हो चुका या तो हमें फ़्री टी वी दिखओ हम प्रोग्राम के साथ एड भी पचा जाएंगे और डकार भी नहीं लेंगे. पेड चैनल में एड नहीं होना चाहिए.

दिन भर के थके हारे, टेंशन से चूर, ब्लड प्रेशर के मरीज़, ज़माने के सताये हुए रात को जब टी वी का सहारा लें कोई अच्छा प्रोग्राम देखना चाहें तो आप हमें कड़वी दवा की तरह धकाधक एड पर एड पिलाने लगें !

यह क्या बात हुई ? चच्चा मुझसे सवाल पूछ रहे थे.

मैने कहा पहले टी वी फ़्री दिखाया जाता था. चैनल अपना खर्च और मुनाफ़ा एड से पूरा करते थे. जब टी वी कमर्शियालाइज़ हुआ, चैनल्ज़ का बुके बनाकर ग्राहक से पैसा लेना शुरू किया तो एड भी साथ ही चलने लगे जैसे फ़्री टी वी में चलते थे. टी वी के ग्राहकों ने कभी नहीं सोचा कि जब हम पैसा दे रहे हैं तो एड क्यों देखें.

यह सुनकर चच्चा गहरी सोच में डूब गये.