Sunday, May 16, 2010

एक कहानी

सन्यासी


चेन्नै सेन्ट्रल से राप्ती सागर एक्स्प्रेस को छूटे हुए एक घन्टा हुआ था. रात का डेढ़ बज चुका था. एसी कम्पार्टमेन्ट में यात्री आराम से सोए हुए थे. एक छोटे स्टेशन पर ट्रेन रुकी और 10 -12 यात्रियों का एक जत्था एसी कम्पार्टमेन्ट में चढ़ आया. इन लोगों के शोर से सारे यत्री परेशान हो उठे. बहुत देर तक वे आपस में बातें करते रहे और फिर सो गये.
सुबह होते ही कम्पार्टमेन्ट में चहल पहल हो गयी. चाय नाश्ते के साथ ज़िन्दगी जाग उठी. यात्रियों का जो जत्था रात को ट्रेन में चढ़ा था उसमें 20 वर्ष के नौजवानों से लेकर 50 वर्ष की पक्की आयु के लोग थे. उन्होंने जाग कर मोबाइल पर बातें करना शुरु कर दीं.
"अब हम आधे घन्टे में ........ स्टेशन पर पहुंचने वाले हैं"
"नाश्ता भिजवा देना"
"पेपर प्लेट्स और मिनरल वाटर भी........"
जब ट्रेन स्टेशन पर पहुंची तो नौकर नाश्ता लिये पहले से ही वहां मौजूद थे. उन्होंने पेपर प्लेट्स, मिनरल वाटर की बोतलें, और नाश्ते के पैकेट यात्रियों के जत्थे को दिये. सभी नौकर ड्रेस में थे, उन्के कन्धों पर एक बड़ी कम्पनी का मोनोग्राम बना हुआ था. मालूम हुआ कि यात्रियों का येह जत्था एक बड़े व्यापारिक संस्थान का मालिक है, जिसकी शाखाएं देश के कोने कोने में फैली हुई हैं.


तभी मुसाफिरों ने देखा कि गोरे चिट्टे, गेरुए वस्त्र धारी एक सन्यासी ने एसी कम्पार्टमेन्ट में प्रवेश किया.मेरी नज़रें भी अनायास उस की ओर उठ गयीं. क्लीन शेव और घुटे हुए सिर का यह नौजवान. जिसकी आयु मुश्किल से 25-26 वर्ष होगी. चेहरे से यूरोपियन लगता है. यह और सन्यासी..... ?


वे नाश्ता करने के साथ साथ हंसी मज़ाक़ और बाए चीत करते रहे. वे दक्खिन भारत के भ्रमण के बारे में ज़िक्र करते. उसके बाद घरेलू बातें शुरु हो जातीं..........
"नितिन भैया लन्दन से कब लौटे गा ?"
"बबली आन्टी पेरिस गयीं हैं"
"चीकू की शादी में बड़ा मज़ा आया था."
फिर कहीं न कहीं से मोबाइल की घन्टी बज उठ्ती.......
वे खूब खाते, मिनरल वाटर पीते, स्टेशन आने से पहले नौकरों को सूचित करते, उनसे खाने पीने का सामान मंगवाते. खाने के बाद पेपर प्लेट्स, खाली बोतलें, चाय के कप, खाने का बचा सामान सीटों के नीचे खिसका देते. दोपहर तक उन्होंने बहुत सा कचरा एसी कम्पार्टमेन्ट की सीटों के नीचे भर दिया.
ए.सी. में यत्रा करने वाले लोगों में ज़्यादातर धनाड्य व्यापारी वर्ग या फिर सरकारी वर्ग होता है. उनमें से कोई भी एक बार यह नहीं बोला कि कचरा हमारी सीटों के नीचे मत फेंको. सोचा कि हमें क्या लेना देना. सरकारी ट्रेन है. हमें तो कुछ समय बाद इस ट्रेन से उतर कर चले जाना है.
ट्रेन अपनी मंज़िल की ओर बढ़्ती जा रही थी. नागपुर का स्टेशन आया. ट्रेन वहां पर कुछ देर को खड़ी हो गयी.
वह यात्री जत्था उतर कर हंसता गाता चला गया.
कम्पार्टमेन्ट के मुसाफिरों ने चैन की सांस ली. चलो धनाड्य असभ्य लोगों से पीछा तो कटा. तभी मुसाफिरों ने देखा कि गोरे चिट्टे, गेरुए वस्त्र धारी एक सन्यासी ने एसी कम्पार्टमेन्ट में प्रवेश किया.
मेरी नज़रें भी अनायास उस की ओर उठ गयीं. क्लीन शेव और घुटे हुए सिर का यह नौजवान. जिसकी आयु मुश्किल से 25-26 वर्ष होगी. चेहरे से यूरोपियन लगता है. यह और सन्यासी..... ?
मैं उसे एक टक देखता रहा. उसने अपना बैग बर्थ पर रखा और आराम से बैठ गया. ट्रेन अभी रुकी हुई थी. ज़रा देर बाद वह बाहर गया और एक दर्जन केले खरीद कर ले आया.
मेरी निगाहें उसी की ओर लगी हुई थीं. उसने बैग से अखबार निकाला, उसे अपने घुटनों पर बिछाया. फिर वह केले छील छील कर खाने लगा. वह ध्यान से छिलके अखबार पर रखता रहा. केले खाने के बाद उसने सारे छिलके सावधानी से अखबार में लपेट लिये. फिर उसने झुककर ट्रेन के फ़र्श को देखा. फ़र्श पर केला छीलते समय एक आध रेशा गिर गया था, वह उसने उंगली में चिपका कर उठाया और अखबार में रख लिया.
ट्रेन चल चुकी थी. वह इंतज़ार करता रहा. अगले स्टेशन पर बाहर जाकर छिलके कूड़ेदान में डाल दिये.
मेरी उत्सुकता बढ़्ती जा रही थी. वह वापस आया तो मैंने उसे अपना परिचय दिया और बातें शुरु कर दीं.
उसने बताया कि वह जर्मनी का रहने वाला है. उसके पिताजी का बिज़नेस कई देशों में है. वह भारत के धर्म और दर्शन से बहुत प्रभावित है और अपने ढंग से दुनिया को देखना चाहता है.
मैंने कहा " यह सन्यासी का वेश.......?"
उसने बताया कि उसे इस वेश भूषा में शांति मिलती है. दूसरे यह कि भारत के लोग सन्यासियों को सम्मान की नज़र से देखते हैं.
मैंने पूछा "भारत के लोग आप को कैसे लगे ?"
उसने कहा " लोग अच्छे हैं लेकिन उनमें सामाजिक दायित्व की कमी है. वे दूसरों के हितों का ध्यान नहीं रखते."
उसकी बात मुझे झकझोर गयी. मैं सोचने लगा कि हम लोग दूसरों के बारे में सोचना कब शुरू करेंगे ?

3 comments:

  1. "उनमें से कोई भी एक बार यह नहीं बोला कि कचरा हमारी सीटों के नीचे मत फेंको. सोचा कि हमें क्या लेना देना. सरकारी ट्रेन है. हमें तो कुछ समय बाद इस ट्रेन से उतर कर चले जाना है."
    — kyaa aap bhi us train me the. o ho, sorry. maine un janaab se kuchh bolaa nahin. pahle to sochaa bhi taa ki bolun lekin unkii umar aur pahnaavaa dekhkar chup ho gaya. Maaf karen bhai, aaindaa dhyaan rakhungaa.
    "चलो धनाड्य असभ्य लोगों से पीछा तो कटा" sach men yahi sochaa thaa.
    "...वह भारत के धर्म और दर्शन से बहुत प्रभावित है और अपने ढंग से दुनिया को देखना चाहता है."
    "उसने बताया कि उसे इस वेश भूषा में शांति मिलती है. दूसरे यह कि भारत के लोग सन्यासियों को सम्मान की नज़र से देखते हैं."
    " लोग अच्छे हैं लेकिन उनमें सामाजिक दायित्व की कमी है. वे दूसरों के हितों का ध्यान नहीं रखते." ..........उसकी बात मुझे झकझोर गयी.....

    yahi saamaajik jaagruktaa sabhi me ho to kyaa kahne. laajawaab prastuti.

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  2. उम्दा कहानी। यूं ही धनाढ्यों को जगाते रहें।
    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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