Thursday, December 29, 2016

हरियाली

बकरी चरती  थी घास
एक दिन लपकी
खेतों की तरफ
हरी हरी हरियाली देख
भटक गयी जंगल में
सूरज ढला
और हो गयी शाम

उधर टीवी पर एक चेहरा
धुंधला करके
दिखाया जाने लगा
अखबारों को मिली सुर्खी
और नाम बदलकर कहानी
पूरे देश में उजागर की गयी

दुखिया मां के सामने
माइक लगाकर
एक जोशीले पत्रकार ने
(जिसे नाम और शोहरत कमाने की धुन थी )
पूछा - आप कौन हैं क्या है.
किस तबके, जात, बिरादरी से
ताल्लुक रखती हैं.
क्या इसी जात के साथ
ये हादसा बराबर होता है ?
या हुआ है पहली बार ?

फिर
मुजरिम की तलाश में
दबिश पर दबिश
एक पकड़ा गया
दो फरार हैं
एक है नेता का भतीजा
दूसरा बड़े अधिकारी का दामाद है
तीसरा उठाईगीरा, बदमाश है.
तीनो गहरे दोस्त
पीड़ित से थी
पुरानी जान पहचान
दो के नंबर
पीड़ित के मोबाईल में थे
(जो डिलीट कर दिये गये )
दो थे मौजूद
जब तीसरा आ टपका
तीनो ने शिकार समझकर
बेचारी अबला को लपका

वह तो बेचारी
आत्याचार की मारी
प्रिंसिपल के शिकायत करने
नेताजी के घर गयी थी
कि प्रिंसिपल ने
डिसिप्लिन के बहाने
की थी छेड़छाड़
और अब स्कूल से निकालने की
धमकी दे रहा था.

उधर खेतो में
अकेली गुमशुदा बकरी को
घेरकर भेड़िये ने
फाड़  खाया.







डेंगू का मच्छर

ये है डेंगू  का  मच्छर
काटता है दिन भर
रात होते ही
दुबक जाता है कोने में

उसूलों का ये है पक्का
रहता साफ़ पानी में
पानी जो हो जाए गन्दा
बंद हो जाए इसका धंधा

नेताजी बोले
डेंगू से क्या डरना
दिन में कपडे पहनो
रात में नंगे फिरना

पानी साफ़ न  रहने दो
करदो इसको  गन्दा
 कूलर पंखा बंद करो
एसी में मौज करो





पतझड़ के मौसम

लू से झुलसे चेहरे ये पतझड़ के मौसम
गर्मी की लपट और अंधड़ के मौसम
सुकून, शांति, इत्मिनान अब कहाँ
दुनिया में फैल गए धडपड के मौसम
कभी तूफान, ओले, धूल भरी आंधियां
रोज़ रंग बदलते हैं गड़बड़ के मौसम
पेड़ झूमे, पानी बरसा  बादल  छाये
झूमते गाते आते हैं बढ़चढ़ के मौसम
क्यों खामोश पड़े हो  बंद कमरे में
बहार निकल कर देखो खड़बड़ के मौसम



Wednesday, January 6, 2016

परछाइयाँ



सूनी पड़ी हैं अब वह अँगनाइयां
गूँज उठती थें जहाँ कभी शहनाइयां

ज़माने का क्या मैं शिकवा करूँ
दूर तक पहुंची हैं मेरी रुस्वाइयां

सर पे सूरज था तो साया भी साथ था
धूप  जाते  ही  मिट गयी हैं परछाइयाँ


भूले बिसरे रिश्ते याद आते नहीं
अब दर्द देती नहीं हैं पुरवाइयां

सिर्फ आँखों में आंसू भरने के लिए
काम कब आती हैं तन्हाईयाँ


Sunday, November 22, 2015

तू बस बनाले जाला

हुक्म हुआ मकड़ी को
तू बस बनाले जाला
और इन्तिज़ार कर
इसमें फंसेगा उड़ने वाला

कछुए से  कहा
चलता रह बस धीरे धीरे
तेज़ दौड़ने की कोशिश न कर
मुंह के बल गिरता है तेज़ दौड़ने वाला

Saturday, November 14, 2015

खुश्क होंटों पर हंसी रख दे

अँधेरे ताकों में रौशनी रख दे
खुश्क होंटों पर हंसी रख दे
माना कि ज़िन्दगी  फरेब है फिर भी
उम्मीदों में एक दिलकशी रख दे
लफ्ज़ की धार तेज़ है लेकिन
लहजे में उसके चाशनी रख दे
अँधेरी रात में तनहा मुसाफिर
उसके रस्ते में चांदनी रख दे

Friday, November 13, 2015

अच्छी किस्मत सूखी रोटी

अच्छी किस्मत
सूखी रोटी
भागते भूत की लंगोटी

अब इत्मीनान
कहाँ है दुनिया में
ज़रा चूके किस्मत फूटी

मेहनत से
या मकर से
मिल जाती है दो वक़्त की रोटी

कर्मचारी की
तनख्वाह क्या
हो जाती है आमदनी मोटी

रिक्शे का मैडम
पूछ रही थी किराया
आया टैक्सी वाला हो गयी रोज़ी खोटी

इस सियासत को
तुम क्या जानो
तुम्हारी तो है बुद्धि मोटी