शाम होते ही शहर की रोशनियां गुल कर दी गयीं. यह वह शहर है जहां का दस्तूर निराला है. मेरा शहर उत्तर प्रदेश के मशहूर हिस्से रुहेलखण्ड का एक भाग है. अभी तक तो यह उत्तर प्रदेश में ही है लेकिन पता नहीं कब यह किसी और प्रदेश में चला जाये या इस्का नाम बदल दिया जाये. यह वह शहर है जो मुगल बादशाह शाहजहां के नाम से मनसूब है. पुराने शाहजहांनाबाद (दिल्ली) में दो इमारते - लाल किला और जामा मस्जिद, आगरा में एक यादगार ताजमहल और रुहेलखण्ड में जमीन का यह भाग जिसे शाहजहांपुर कहते हैं, शाहजहां के लाज़वाल वकार की कहानी कह रहा है.
मुगलों का दौर गुज़र गया, आसार बाकी हैं वह भी आहिस्ता आहिस्ता मिट रहे हैं. ताजमहल के संगे मरमर को तेज़ाबी माद्दे खोखला कर रहे हैं, उसकी बुनियदें धंस रही हैं. जामा मस्जिद के पत्थर घिस चुके हैं उनके ज़र्रात झड रहे हैं. लाल किला भाषण देने के काम आ रहा है, शीश महल के शीशे काले पड चुके हैं, दीवाने आम और दीवाने खास की हालत देखने के काबिल है ऐसे में अपने शहर का ज़िक्र क्या किया जाये. लेकिन हर शहर में कुछ अच्छाइयां कुछ बुराइयां होती हैं क्यों न उनहीं पर बात की जाये:
यह शहर दो नदियों गर्रा और खन्नौत के बीच बसा है. बहुत सारे शहर सिर्फ एक नदी के किनारे बसे हैं. इस में खास बात यह है कि यह दो नदियों के दरम्यान है. यहां पानी की बहुत इफ़रात है इस्लिये यहां पानीदार लोगों की कमी नहीं. यहां वह जियाले पैदा हुए जिन्होंने अंग्रेज़ों के छ्क्के छुडा दिये.
यह शहर राम प्रासाद बिस्मिल, अश्फ़ाक उल्लाह खान और ठाकुर रोशन सिंह की वजह से ही मशहूर नहीं है जिन्होंने काकोरी में सरकारी खज़ाना लूटने के जुर्म में फांसी की सज़ा पायी और अपना नाम आज़ादी के अमर शहीदों में लिखा गये. इस शहर में 1857 के दौरान अहमद उल्लाह शाह ने अंग्रेज़ों से आखरी लडाई लडी. यहीं उनका सर दफन है. 1857 की लडाई जीतने के बाद नवाब बहादुर खां का किला और मोहल्ला ख्वाजा फीरोज़ में नवाब याकूब अली खां का किला खोद कर ज़मीन के बराबर कर दिया गया. अंग्रेज़ों ने अपना गुस्सा ईंट पत्थरों पर भी उतारा.
उत्तर प्रदेश में नदियों का बहाव उत्तर से दखिन को है इसलिये शहर बसाने वलों की मजबूरी थी कि शहर भी लम्बाई में नदियों के बीच की पट्टी में बसाया जाए. उन्होंने शहर बसा कर दो सडकें लम्बाई में निकाल दीं. 1637 में यह शहर बसाया गया, अब यह नदियों के किनरों के बाहर तक फैल चुका है. सडकें अब तंग पड चुकी हैं और उन पर कई प्लान लागू हैं - जैसे शहर को हरा भरा और साफ़ सुथरा बनाने का प्लान. इतिहास पर एक नज़र डाल जाइए - चाहे महाराजा अशोक का ज़माना हो या चंद्र्गुप्त मौर्य का, सड़कों के दोनों ओर पेड़ लगाने की परम्परा रही है. इस ज़माने में ग्रीन सिटी और क्लीन सिटी का सपना साकार करना है. इसके लिये सडकों के किनारे पेड लगाये गये. पेड जब बढे तो बिजली के तारों से बातें करने लगे. अब पेड काटते हैं तो पर्यावरण का सत्यानास होता है, नहीं काटते हैं तो बिजली वाले परेशान हैं - क्या किया जाए ?
जब दरख्त लगाने से सिटी ग्रीन हो गया तो क्लीन सिटी पर अमल करते हुए शहर के नाले नालियों की सफाई का काम शुरु हुआ. बारिश का इस शहर की सफाई से पुराना बैर है. इधर नाले नालियों का कचरा सडक के किनरे डाला गया कि ज़रा सूख जाए तो उठाया जाए, उधर बारिश शुरु हुई. सडकें तालाब बन गयीं और कचरा चारों ओर फैल गया. ग्रीन सिटी और क्लीन सिटी का सपना अधूरा रह गया.
फिर सोचा गया कि और शहरों की तरह वन वे ट्रैफिक की शुरुआत की जाए. सडकों को डिवाइडर लगा कर दो भागों में बांट दिया गया. दुकानों के सामने वाहन पार्क करने से मना किया गया ताकि लोगों को असुविधा न हो. अब लोग बीच सडक पर अपने वहन पार्क करते हैं और वन वे ट्रैफिक का मज़ा लेते हैं.
संचार क्रांति भी यहां बडी तेज़ी से आयी. रोज़ नयी नयी कम्पनियां सड़्कों के किनारे केबिल डाल रही हैं. केबिल मार्क करने के लिए पत्थर के खूंटे गाड़ रही हैं. लोग अन्धेरे में उनसे टकरा कर हाथ मुंह तुड़्वा रहे हैं. संचार क्रांति का फ़ायदा यह है कि इधर ठोकर लगी उधर मोबाइल से घर पर सुचना दी कि चोटिल हो गये हैं आकर उठा ले जाओ. यदि संचार क्रांति में तेज़ी न आयी होती तो इतनी जलदी सुचना देना संभव नहीं था.
बिजली हो या टेलीफोन दोनों यहां पर आंख मिचोली खेलते हैं. लैन्डलाइन टेलीफोन लोगों ने कटवा दिये और मोबाइल से नाता जोडा है क्योंकि लैन्डलाइन टेलीफोन का ठीक रहना बडे सौभाग्य की बात है:-
मैने एक कम्पनी का
बेसिक टेलीफोन कनेक्शन लिया
लोगों ने कहा:
नये ज़माने में
पुरानी बांसुरी बजा रहे हो
लोग हवाई जहाज़ की सोचते हैं
तुम तांगे पर जा रहे हो
यह टेलीफ़ोन तो
लगता ही नहीं है
इस पर नम्बर मिलता ही नहीं है
अक्सर खराब रह्ता है
मैने कहा:
चलो यह भी अच्छा है
कभी तो बेवजह कालों से
छुट्टी मिलेगी
टेलीफोन खराब है
मसरूफियत के इस दौर में
यह बहाना भी अच्छा है
इस शहर के बारे में लोगों के विचार कुछ भी हों, यह एक एतिहासिक शहर है जो इतिहास की सुनहरी यादों को गले से लगाये अतीत और वर्तमान के झूले में झूल रहा है. यहां के लोगों में सौहर्द और भाई चारा है. लोग एक दूसरे के दुख दर्द में बखूबी काम आते हैं. यहां के लोगों में शिष्टाचार, और बोल चाल की भाषा का एक उत्कर्ष रूप देखने को मिलता है. यहां बोली जाने वाली भाषा रेडियो, टी वी और सिनेमा की जान है. इस शहर ने अपनी भाषा को बचा रखा है और यह एक बड़ी बात है.
तो यह है मेरे शहर की कहानी.