सूनी पड़ी हैं अब वह अँगनाइयां
गूँज उठती थें जहाँ कभी शहनाइयां
ज़माने का क्या मैं शिकवा करूँ
दूर तक पहुंची हैं मेरी रुस्वाइयां
सर पे सूरज था तो साया भी साथ था
धूप जाते ही मिट गयी हैं परछाइयाँ
भूले बिसरे रिश्ते याद आते नहीं
अब दर्द देती नहीं हैं पुरवाइयां
सिर्फ आँखों में आंसू भरने के लिए
काम कब आती हैं तन्हाईयाँ