चच्चा बोले एक नया स्कूल खुला है. अखबार में एड छपा है कि जिसे एडमीशन कराना हो जल्दी रजेस्ट्रेशन कराए.
मैने पूछा क्या आप ने रजेस्ट्रेशन कराया ?
बोले मैं गया था अपने पड़ोसी छुटकू के लिये. स्कूल वालों ने पूछा कि इसका बप क्या करता है. मैंने कहा मज़दूरी !
कहने लगे क्यों मज़ाक़ करते हो. जानते हो कि यह सेन्ट सी एल कानवेन्ट स्कूल है. यहां की पढ़ाई हाई फ़ाई इंगलिश है. जिस बच्चे के घर पर अच्छा माहौल न हो वह यहां क्या पढेगा और घर पर क्या सीखेगा. बस का किराया, फ़ीस, सब मिलाकर हज़ारों रूपये का खर्च है. आप छुटकू को किसी सरकारी स्कूल में क्यों नहीं डालते ?
मैने कहा वहां पढ़ाई से ज़्यादा खाने पर ध्यान है.
बोले यह तो और अच्छा है. पेट भी भरेगा, वक़्त भी कटेगा.
किताबें फ़्री, खाना फ़्री, फ़ीस नहीं, फिर भी कोई पढ़ना न चाहे तो सरकार क्या करे ?
चच्चा बोले मैं झुंझलाकर चला आया.
बाद में पता किया कि यह संत (सेंट) सी एल महाशय कौन थे जिनके नाम पर स्कूल खुला है. मालूम हुआ कि छेदालाल नाम का एक व्यक्ति चाट पकौड़े बेचा करता था. उसके मरने के बाद लड़कों ने जोड़ तोड़ करके स्कूल खड़ा कर दिया. छेदालाल का सी एल लेकर पिताजी को संत की पदवी देदी. कानवेंट के लिये सेंट ज़ारूरी था इसलिये पिताजी संत भी हो गये.
चच्चा बोले अच्छा आइडिया है. अब मैं भी सेंट बन जाऊंगा और स्कूल खोलूंगा. सेंट सी सी ( संत चच्चा चंगू) कान्वेन्ट स्कूल !
मैने कहा कान्वेन्ट में फ़ादर भी होते हैं फ़ादर कहां से लाएंगे ?
चच्चा बोले मैं खुद पिताजी का किरदार निभाऊंगा. मैंने कहा और मदर.........?
चच्चा गहरी सोच में डूब गये.
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