डाक्टर कमर रईस
मैय्या अब मत लोरी गाओ
सो सो कर हलकान हुए हम
बे-हिस और बेजान हुए हम
इल्मो-हुनर तदबीर तअक्कुल
हर शै से अंजान हुए हम
किसने डसा है कैसा नशा है ?
मन्तर इस काटे का लाओ
मैय्या अब मत लोरी गाओ
अरब हो या अफ़ग़ानिस्तान
असहाबे कहफ़ सब सोते हैं
हम जो सगाने ख्वाब ज़दा हैं
नींद में अक्सर रोते हैं
कैसा हम पर वक़्त पड़ा है
कोई झंझोड़ो कोई जगाओ
मैय्या अब मत लोरी गाओ
ज़हनों पर लरज़ा तारी है
सोचना भी खुद आज़ारी है
अंदर हो या बाहर कब से
भूतों का तान्डव जारी है
हर सू वह्शत-नाक अंधेरा
कोई तो एक दिया जलाओ
मैय्या अब मत लोरी गाओ
तन की शिरयानों में जैसे
भागते गीदड हांप रहे हैं
दो पैरों पर दौड़ने वाले
चौपाये बन कांप रहे हैं
बाज़ू शल हिम्मत दरमान्दा
तूफ़ानों में घिरी है नाओ
मैय्या अब मत लोरी गाओ
बर्क़ सी दौड़ादे जो बदन में
फ़िकरो-अमल को जो शहपर दे
आंखों में सपनों को सजाये
हाथों को तौक़ीरे हुनर दे
सदियों तक जो नींद उड़ादे
ऐसी एक झकझोरी गाओ
मैय्या अब मत लोरी गाओ
कमर रईस की नज़्म पढी बहुत अछी लगी
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