अयूब असर का नाम शाहजहांपुर के बड़े शायरों में लिया जाता है। आप की किताब बोलती तन्हाइयां का प्रकाशन 2005 में हुआ। बोलती तन्हाइयां में ग़ज़लें और नज़्में हैं। अयूब असर की शायरी में जिन्दगी की कड़वी मीठी सच्चाइयां हैं । वह एक खुले दिल के इंसान थे साफ बात कहना और करना पसंद करते थे। उनकी शायरी भी उन्हीं की तरह खुली खुली है।
हमारे बाद कोई गम की धूप में न जले
शजर यह सोच के हमने भी कुछ लगाये हैं
असर बहार का मौसम जो याद आया कभी
तो हम क़फ़स में बहुत देर फड़फड़ाये हैं
जामे मय आंखों को चेहरे को कमल लिखते रहे
उसकी सूरत देखकर हम भी ग़ज़ल लिखते रहे
सच तो ये है ग़ौर से जब तक उसे देखा न था
चांद को हम उसे चेहरे का बदल लिखते रहे
अपनी मंज़िल की तमन्ना में जो भटके उम्र भर
दूसरों की खुशनसीबी का वो हल लिखते रहे
मेरे आंगन में न उतरी एक पल भी चांदनी
लिखने वाले जाने क्या राशि के फल लिखते रहे
इश्क के बीमार को यारो शिफा होती नहीं
इस मर्ज़ में कारगर कोई दवा होती नहीं
शोर उठता है अगर पत्ते पे शबनम भी गिरे
शीशाए दिल टूट जाता है सदा होती नहीं
मौत को हम दुश्मने इन्सां समझते थे असर
ज़िन्दगी भी मार डालेगी यह अंदाज़ा न था
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