तुगरा खान की
गिनती शहर के पुराने पुस्तक विक्रेताओं में होती थी।
आमतौर पर यह देखा
गया है कि पुस्तक विक्रेता विद्वान और हलवाई मिठाईखोर नहीं होते हैं। किताब विक्रेताओं
के अलावा किताबों के रखवाले, जिन्हें आमतौर पर
लाइब्रेरियन कहा जाता है, को बुद्धिजीवी
होते नहीं सुना गया। जैसे वक्त का झन्नाटेदार थप्पड़ आदमी को कब्र में पहुंचा देता
है, वैसे ही वह किसी को लाइब्रेरियन और किसी को चपरासी
बना देता है।
लेकिन तुगरा खान का
मामला इन लोगों से अलग है। वह एक ही समय में पुस्तक विक्रेता, विद्वान और घड़ीसाज़ भी थे। वह अपना खाली समय पुरानी
घड़ियों को ठीक करने में लगाते थे और इस तरह
घड़ी घड़ी का हिसाब रखते थे।
उनका पुराने जमाने
का ड्राइंग रूम किताबों और घड़ियों से भरा हुआ था। विभिन्न प्रकार की घड़ियाँ दीवारों
पर लटकी रहती थीं। मेज पर टाइम पीस और पुरानी जेबी घड़ियाँ सजी रहती थीं। और प्रत्येक घड़ी घंटे में अलग-अलग टाइम। भारत के अलावा, दुनिया के प्रमुख शहरों में स्थानीय समय बताने
वाली घड़ियाँ मौजूद थीं। थोड़ी देर बाद, ड्राइंग रूम दीवार घड़ी या अलार्म घड़ी के बजने से गूंज उठता था। इस ड्राइंग रूम
में बैठे व्यक्ति को ऐसा लगता था जैसे वह किसी संग्रहालय में बैठा हो। सैकड़ों घड़ियों
के बीच में होने के बावजूद वह समय का सही अनुमान नहीं लगा सकता था।
जब तुगरा खान को होश
आया, तो वह बॉम्बे के जेजे अस्पताल
में पट्टियों में जकड़े पड़े थे। सौभाग्य से, तुगरा खान एक चार
मंजिला इमारत की बालकनी से नीचे होटल के बांस और तिरपाल से बने सायेबान पर गिरे थे
और तिरपाल समेत गधों के एक झुंड पर गिरे जो वहां से गुजर रहे थे। इस हादसे में कई गधों
की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए जिन्हें पशु अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
जब इस दुर्घटना की
खबर अखबारों में फैली और मारे गए और घायल गधों को मुआवजा देने की घोषणा की गई,
तो अवसरवादी इन गधों के रिश्तेदार बन कर और संबंधी
होने का प्रमाण जुटाकर संबंधित विभाग के चक्कर लगाने लगे। पुलिस ने तुगरा खान से भी
पूछताछ की, लेकिन उन्होंने उस गधे का
नाम बताने से साफ इनकार कर दिया, जिसने पहली मुलाकात
के दौरान उन्हें दोलत्ती मारी थी। उन्होंने बस इतना कहा कि अचानक चक्कर आ जाने से वह चार मंजिला इमारत की बालकनी से गिर गये थे।
इतना ऊंचा चढ़ने की आदत उन्हें नहीं है, इसीलिए ये दुर्घटना घटी। पुलिस ने उनका नाम
पता नोट कर लिया और हिदायत दी की कभी ऊंची इमारत पर न चढ़ना।
खुदा खुदा करके तुगरा
खान कई महीनों के बाद ठीक हुए और अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिए गये। लेकिन एक पैर में
झोल आ गया जिसे उसने सौभाग्य का संकेत माना कि तैमूर लंग ने अपनी इस कमी के बावजूद
एशिया में उथल पुथल मचा दी थी, तो तुगरा खान क्या नहीं कर सकते।
तुगरा खान ने कमर
पर हाथ रखकर बंबई की सड़कें नापना शुरू कर दीं। कमर पर हाथ रखने से पैर में आये
लंगड़ेपन की कुछ कमी दूर होती थी। दरअसल, वह उस नामाकूल गधे को सबक सिखाना चाहते थे जिसने पहली
मुलाकात में दुलत्ती झाड़ दी थी। वैसे दुलत्ती
झाड़ना तो गधों का जन्मसिद्ध अधिकार है और उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता
है। लेकिन मुलाकात के दौरान यह कृत्य खासकर जब वह पहली मुलाकात हो तो
यह बहुत ही असभ्य और अशोभनीय होता है। क्योंकि
इससे अतिथि के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। इसे समझाने के लिए तुगरा खान को गधे
की कोठी पर वापस जाना पड़ा।
वहां जाकर पता
चला की गर्दब राज हवा पानी बदलने किसी पहाड़ी स्थान पर गया हुआ है। तुगरा खान को यह
जानकर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने मेज पर पड़े उसी के राइटिंग पैड पर लिखा – ‘समय
आने पर मैं तुमसे निपट लूंगा’, ऐसा लिखने के बाद उन्होंने दादर से ट्रेन पकड़ी और
अपने वतन वापस आ गये।
मैं तुगरा खान के घर उनका हालचाल जानने गया था। मैंने देखा
कि खान साहब हमेशा की तरह अपने पुराने जमाने के ड्राइंग रूम में अपनी कमर पर हाथ रखे
दीवार घड़ी का पेंडुलम ठीक कर रहे थे, और ये शेर गुनगुना रहे थे।
जागते हो तो
दू-ब-दू कुत्ते
सोकर उठो तो
रु-ब-रु कुत्ते
मैंने अभिवादन किया
अभिवादन का उत्तर देते हुए वह मुड़े और कहा:
आदमी की मआश हो क्योंकर?
कुत्तों में
बूद-ओ-बाश हो क्योंकर?
मैंने कहा हज़रत
ये कुत्तों के शेर?
कहने लगे ये शेर कुत्तों
के नहीं हैं, मीर तकी मीर के हैं।
मैं हैरान था।
तुगरा खान कहने लगे। मियां, ये बात उस समय की है जब मैं
आप की तरह जवान था। एक अंग्रेज को देखा कि
कुत्ता पाले हुए है। बदसूरत और खतरनाक कुत्ता नहीं बल्कि प्यारा सा कोमल और नाजुक कुत्ता।
अंग्रेज उसे अपनी गोद में लेकर टहलने के लिए निकलता। वह मेरा कालेज का ज़माना था। यह
देखकर मुझे भी कुत्तों का शौक हो गया। कुछ समय के लिए, मैं कुत्तों की संगति में रहा। मेरे खाने-पीने की आदतें
कुत्तों जैसी हो गईं। शौक वही है जो पागलपन की हद तक पहुंच जाए। मेरे साथ ऐसा हुआ कि
जब मैं सोकर उठता तो मुझे कुत्ते दिखाई देते। बोलता, तो मुंह से कुत्ते की तरह झाग निकलता और आवाज में कुत्ते की
गुर्राहट शामिल होती। लोग मुझसे किनारा करने
लगे। बड़ी मुश्किल से यह शौक छूटा।
पिछले दिनों जब ऊंची इमारत से
गिरने की वजह से मेरा मुम्बई में इलाज चल रहा था,
पता नहीं डाक्टरों कौन सा इंजेक्शन दिया कि मुझे वार्ड में हर बेड पर कुत्ता नजर
आया। डॉक्टर मरीज को सूंघकर बात देते थे की यह मरीज इलाज कराएगा या नहीं। मैं वहां
हर रंग, नस्ल और धर्म के कुत्तों के
साथ रहा।
मैंने टोकते हुए कहा,
"हज़रत, कुत्तों का रंग और नस्ल तो समझ में आती है,
लेकिन कुत्तों का धर्म?"
उन्होंने कहा,
"तुम नहीं समझोगे। ये तुम्हारी
समझ से बाहर की बातें हैं। इन्हें वही समझ सकते हैं जो मेरी तरह या या मीर तकी मीर
की तरह कुत्तों के साथ में रह चुके हों।
मीर तकी मीर को एक
हसीना से प्यार हो गया और उस हसीना ने मीर को एक गांव की लम्बी यात्रा पर भेज
दिया। पता नहीं उस हसीना का इरादा क्या था। हो सकता है वह उन्हें आजमाना चाहती हो
कि इश्क के झटके वह झेल सकेंगे या नहीं। पुराने लोग कहते थे कि आदमी को परखने का
सबसे अच्छा तरीका सफर है। सफर का मतलब यात्रा, इस सफर में जब वह सफर करता है तो
सारी कलई खुल जाती है।
कहते हैं सफर
वसीला-ए-ज़फर है, यानी यात्रा सफलता की कुंजी है। लेकिन मीर साहब ठरे नाजुक मिजाज
शायर। प्रेमिका के कहने से चले तो गये, सफर ने उनकी सारी चूलें हिला दीं।
पहुंचे ऐसे गांव में जहां कुत्तों का राज
था। हर जगह कुत्ते। उनके घूरने, भौंकने और गुर्राने
ने मीर के इश्क का बुखार उतार दिया, और उन्हें कहना पड़ा:
जागते हो तो
दू-ब-दू कुत्ते
सोकर उठो तो
रु-ब-रु कुत्ते
बाहर अंदर कहां
कहां कुत्ते
बाम-ओ-दर, छत
जहां तहां कुत्ते
आदमी की मआश हो क्योंकर?
कुत्तों में
बूद-ओ-बाश हो क्योंकर?
ये अशआर मीर तकी मीर की सारी शायरी पर भारी हैं क्योंकि
यह कुत्तों की सार्वभौमिकता को दर्शाते हैं। विद्वानों का मानना है कि मीर ने इश्क
के अलावा और कुछ नहीं सोचा। मैं कहता हूं कि प्रगतिशील कवियों और लेखकों को मीर को
अपना गुरु मानना चाहिए। उन्होंने इन अशआर में प्रचलित सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रहार किया है।
मुझे तुगरा खान के
शब्दों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि मीर जैसा कवि कुत्तों से इतना नाराज हो सकता है
कि वह उन पर व्यंग लिख दे।
तुगरा खान बोले, हर
समझदार इंसान कुत्तों से नाराज़ रहता है और कुत्ते हैं कि पीछा नहीं छोड़ते बल्कि कब्र
तक साथ जाते हैं।
कब्र तक! मैंने आश्चर्य
से कहा।
हाँ! और क्या। वहाँ
अस्पताल में एक खतरनाक किस्म के कुत्ते ने मेरा पीछा किया। उसने कहा "मेरे साथ किसी डॉक्टर के नर्सिंग होम चलो जो सर्जरी
के जरिए तुम्हारा लंगड़ापन दूर कर देगा।" मैंने कहा कि मुझे सर्जरी नहीं कराना
है। क्या पता मेरे असली पैर की जगह किसी कुत्ते की टांग लगा दें।
मैंने कई लोगों को
दूसरों के अंगों के साथ घूमते देखा। अस्पताल में मेरे प्रवेश के दूसरे दिन,
एक सज्जन दाहिनी आंख बकरे की, बायीं पुतली मुर्गे
की, दिल एक तीतर का और गुर्दा अपने साले का लगाए अंतिम यात्रा पर रवाना हो गये। यह
पता चला कि वह अपना दिमाग बदलवाने के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनका दिमाग काफी
पुराना हो चुका था और नयी तकनीक के साथ तालमेल नहीं बिठा सकता था।
कई बार ऐसा हुआ है
कि रातों-रात लोगों की किडनी और फेफड़े निकाल लिये गए और दूसरों के फिट कर दिये गये। एक मरीज रात को अच्छा भला सोया
था, सुबह जब वह उठा तो उसके पेट में चीरा लगा था। पूछा क्या हुआ पता चला कि एमर्जेंसी
में एक मरीज आया था जिसे आंतों के दो या तीन इंच के टुकड़े की जरूरत थी, इसलिए ऐसा किया गया। कई मीटर लंबी आंतों में से
एक को दो इंच काट देने किसी की जान बच जाए तो बुरा क्या है?
मुझे डर था कि कहीं
वे मेरा दिमाग न बदल दें और उसकी जगह किसी गर्दबराज का भेजा भर दें, इसलिए मैंने बिना
डिस्चार्ज स्लिप लिये अस्पताल छोड़ दिया। सुना है अस्पताल मुझे तलाश कर रहे हैं।
जब मैं अस्पताल से
भागा, तो एक नाकारा कुत्ते ने मुझे
देखा और भौंकने लगा। आप जानते हैं कि कुत्तों के साथ मेरा अनुभव कितना पुराना है। इसलिए
मैं बिल्कुल भी नहीं घबड़ाया। उसने अपने दांत निकाले, मैंने भी अपने दांत निकाले। वह
भौंकने लगा, मैंने भी गुर्राने की आवाज
निकाली। लेकिन जब उसने मुझ पर हमला किया, तो मैंने भागना ही सुरक्षित महसूस किया।
अब स्थिति यह थी कि मैं आगे था और वह मेरे पीछे। बहुत देर तक वह मेरा पीछा करता रहा।
उसने मुझे इतना दौड़ाया की मैं एक गहरे नाले में गिर गया.
अपनी चोटों की परवाह
न करते हुए जब मैं कीचड़ में खड़ा
होने की कोशिश कर रहा था, तो मैंने नाले के किनारे लोगों की भीड़ को ताली बजाते और हंसते
हुए देखा। उनमें वह कुत्ता भी शामिल था। उस समय वे सभी लोग मुझे कुत्तों की तरह लग
रहे थे, जो दांत निकाल कर किसी आदमी
की लाचारी का मज़ाक उड़ा रहे थे। अपनी हालत देखकर मुझे मीर तकी मीर की हालत याद आई
और मेरे मुंह से ये शेर निकला:
आदमी की मआश हो क्योंकर?
कुत्तों में बूद-ओ-बाश हो क्योंकर?
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