डाक्टर यूसुफ़ गौहर शाहजहांपुरी, शायर, कहानीकार और एक कामयाब पत्रकार हैं. पिछले दो वर्ष से वह उर्दू मैगज़ीन उफ़क़े नौ निकाल रहे हैं. यह पत्रिका बेहद पसंद की जा रही है. 12 अप्रैल 1939 ई. में आपने शाहजहांपुर के एक मध्यमवर्गीय घराने में आंखे खोलीं. घर का; माहौल शुरू से ही साहित्यिक था. बड़े भाई अज़हर अली खां जौहर अच्छे शायर और दिल साहब के शागिर्दों में थे.
डाक्टर यूसुफ़ गौहर ने 1951-52 में साहित्यिक दुनिया में क़दम रखा. पहले कहानियां लिख्नना शुरू कीं. फिर शायरी की तरफ़ रुझान हो गया. देश के साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में उनकी कहानियां और ग़ज़लें छप रही हैं. उनकी शायरी दिल की आवाज़ है. वह समाज की बुराइयों पर गहरी चोट करते हैं. शेर हमेशा सोच समझकर कहते हैं. उनकी कवितायें बहुत पसन्द की गयी हैं.
क्लर्की करके पछताये
क्लर्की करके पछताये,क्लर्की करके पछताये
बड़ा धोका हुआ हमसे जो इस पेशे में हम आये
इधर अफ़सर भी हैं नाराज़ क्यों यह काम बाक़ी है
उधर मज़दूर कह्ते हैं कि यह बाबू मिराक़ी है
कोई किस किस को समझाये, कोई किस किस को बहलाये
क्लर्की करके पछताये
अभी तारीख़ है पन्द्र्ह मगर यह जेब खाली है
उधर बीवी का यह आलम कि पैसों की सवाली है
नहीं मुमकिन सुकूं से अब जो कोई दिन भी कट पाये
क्लर्की करके पछताये
यह बीवी का अब आर्डर है न डेली शेव बनवायें
बचाकर इस तरह पैसे उसे साड़ी पहनवायें
उसे क्या ग़म हमारा शेव घुटनों तक जो बढ़ जाये
क्लर्की करके पछताये
अगर दस साल पहले हम किसी बिज़नेस में पड़ जाते
न होती पास कौड़ी भी मगर हम सेठ कहलाते
निकलती तोंद अपनी भी न फिरते पेट पिचकाये
क्लर्की करके पछताये
यह सोचा था कि बी.ए. करके एल. एल.बी. करेंगे हम
विलायत जाके फिर कानून का पुतला बनेंगे हम
करें क्या हम अगर गौहर अचानक बाप मर जाये
क्लर्की करके पछताये
मेरे सीने में भी कुछ वक़्त के नश्तर लोगो
फिर हुआ जाता हूं मैं मोम से पत्थर लोगो
मेरा क़ातिल तो मुझी में है निहां दूर नहीं
तुम अबस ढूंढ रहे हो उसे घर घर लोगो
शहर का शहर मेरे क़्त्ल पे आमादा है
मैं तो शर्मिन्दा हूं आईना दिखाकर लोगो
अपने मक़सद के लिये झूठ रवा, ज़ुल्म रवा
और अपने को समझते हो पयम्बर लोगो
जाने क्या क्या न मेरे बारे में सोचा होगा
रास्ता आज भी उसने मेरा देखा होगा
मोर सोने का खरीदेंगे किसी के बच्चे
दस्ते अफ़्लास में मिट्टी का खिलौना होगा
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