Sunday, May 29, 2011

एक खत ग़ालिब का दिल्ली के बारे में

गालिब लिखते हैं:

".....बरसात का नाम आ गया पहले सुनो- एक गदर कालों का, एक हंगामा गोरों का, एक फ़ितना इन्हिदाम मकानात का, एक आफ़त वबा की, एक मुसीबत काल की, अब यह बरसात जमी हालात की जामे है. आज इक्कीसवां दिन है, आफ़ताब इस तरह नज़र आ जाता है जिस तरह बिजली चमक जाती है. रात को कभी कभी अगर तारे दिखाई देते हैं तो लोग उनको जुगनू समझ लेते हैं. अंधेरी रातों में चोरों की बन आई है. कोई दिन नहीं कि दो चार घर की चोरी का हाल न सुना जाये. मुबालग़ा न समझना हज़ारहा मकान गिर गये. सैंकड़ों आदमी जा-ब-जा दबकर मर गये. गली गली नदी बह रही है. किस्सा मुख्तसर वह अन्न काल था कि मेंह न बरसा अनाज न पैदा हुआ, यह पन काल है, पानी ऐसा बरसा कि बोये हुए दाने बह गये. जिन्होंने अभी नहीं बोया था वह बोने से रह गये. सुन लिया दिल्ली का हाल ? इसके सिवा कोई नई बात नहीं है जनाब मीरन साहब को दुआ, ज़्यादा क्या लिखूं."

और कुछ शेर कई कवियों के


मेरी आह्ट पाके वह चिल्लाके बोले कौन हो
हड़्बड़ाया मैं कि मैं हूं मैं हूं सरकार आदमी

ज़माने को क्या क्या दिया देने वाले
हमें तूने टरखा दिया देने वाले
ज़माने को तोपें भी दीं मालो-ज़र भी
हमें तूने चरखा दिया देने वाले

नई हदबन्दियां होने को हैं आईने गुल्शन में
कहो बुलबुल से अब अन्डे न रखे आशियाने में

सर्राफ़ कसौटी पे घिसा करते हैं ज़र को
हम वो हैं जो आंखों से परखते हैं बशर को
इन चारों को जादूए सितम देखा है फ़खरू
एक हुस्न को आवाज़ को दौलत को हुनर को

चला जाता हूं हंसता खेलता मौजे हवादिस से
अगर आसानियां हों ज़िन्दगी दुशवार हो जाए

यहां कोताहिये ज़ौक़े अमल है खुद गिरफ़्तारी
जहां बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है

Thursday, March 3, 2011

मैय्या अब मत लोरी गाओ

डाक्टर कमर रईस

मैय्या अब मत लोरी गाओ
सो सो कर हलकान हुए हम
बे-हिस और बेजान हुए हम
इल्मो-हुनर तदबीर तअक्कुल
हर शै से अंजान हुए हम

किसने डसा है कैसा नशा है ?
मन्तर इस काटे का लाओ

मैय्या अब मत लोरी गाओ

अरब हो या अफ़ग़ानिस्तान
असहाबे कहफ़ सब सोते हैं
हम जो सगाने ख्वाब ज़दा हैं
नींद में अक्सर रोते हैं

कैसा हम पर वक़्त पड़ा है
कोई झंझोड़ो कोई जगाओ

मैय्या अब मत लोरी गाओ

ज़हनों पर लरज़ा तारी है
सोचना भी खुद आज़ारी है
अंदर हो या बाहर कब से
भूतों का तान्डव जारी है

हर सू वह्शत-नाक अंधेरा
कोई तो एक दिया जलाओ

मैय्या अब मत लोरी गाओ

तन की शिरयानों में जैसे
भागते गीदड हांप रहे हैं
दो पैरों पर दौड़ने वाले
चौपाये बन कांप रहे हैं

बाज़ू शल हिम्मत दरमान्दा
तूफ़ानों में घिरी है नाओ

मैय्या अब मत लोरी गाओ

बर्क़ सी दौड़ादे जो बदन में
फ़िकरो-अमल को जो शहपर दे
आंखों में सपनों को सजाये
हाथों को तौक़ीरे हुनर दे

सदियों तक जो नींद उड़ादे
ऐसी एक झकझोरी गाओ

मैय्या अब मत लोरी गाओ

Wednesday, January 26, 2011

जिसे एडमीशन कराना हो जल्दी रजेस्ट्रेशन कराए

चच्चा बोले एक नया स्कूल खुला है. अखबार में एड छपा है कि जिसे एडमीशन कराना हो जल्दी रजेस्ट्रेशन कराए.
मैने पूछा क्या आप ने रजेस्ट्रेशन कराया ?
बोले मैं गया था अपने पड़ोसी छुटकू के लिये. स्कूल वालों ने पूछा कि इसका बप क्या करता है. मैंने कहा मज़दूरी !
कहने लगे क्यों मज़ाक़ करते हो. जानते हो कि यह सेन्ट सी एल कानवेन्ट स्कूल है. यहां की पढ़ाई हाई फ़ाई इंगलिश है. जिस बच्चे के घर पर अच्छा माहौल न हो वह यहां क्या पढेगा और घर पर क्या सीखेगा. बस का किराया, फ़ीस, सब मिलाकर हज़ारों रूपये का खर्च है. आप छुटकू को किसी सरकारी स्कूल में क्यों नहीं डालते ?
मैने कहा वहां पढ़ाई से ज़्यादा खाने पर ध्यान है.
बोले यह तो और अच्छा है. पेट भी भरेगा, वक़्‍त भी कटेगा.
किताबें फ़्री, खाना फ़्री, फ़ीस नहीं, फिर भी कोई पढ़ना न चाहे तो सरकार क्या करे ?
चच्चा बोले मैं झुंझलाकर चला आया.
बाद में पता किया कि यह संत (सेंट) सी एल महाशय कौन थे जिनके नाम पर स्कूल खुला है. मालूम हुआ कि छेदालाल नाम का एक व्यक्‍ति चाट पकौड़े बेचा करता था. उसके मरने के बाद लड़कों ने जोड़ तोड़ करके स्कूल खड़ा कर दिया. छेदालाल का सी एल लेकर पिताजी को संत की पदवी देदी. कानवेंट के लिये सेंट ज़ारूरी था इसलिये पिताजी संत भी हो गये.
चच्चा बोले अच्छा आइडिया है. अब मैं भी सेंट बन जाऊंगा और स्कूल खोलूंगा. सेंट सी सी ( संत चच्चा चंगू) कान्वेन्ट स्कूल !
मैने कहा कान्वेन्ट में फ़ादर भी होते हैं फ़ादर कहां से लाएंगे ?
चच्चा बोले मैं खुद पिताजी का किरदार निभाऊंगा. मैंने कहा और मदर.........?
चच्चा गहरी सोच में डूब गये.

Tuesday, December 21, 2010

चालिस के बाद..... !

चालिस के बाद इंसान को अगर ज़्यादा दिनों तक इस दुनिया में ज़िन्दा रहना है तो उसे अपनी शक्ति को सुरक्षित रख्नना चाहिये. एक दार्शनिक ने लिखा है कि चालिस के बाद इंसान खड़ा क्यों हो अगर वह बैठ सकता है, और बैठे क्यों अगर वह लेट सकता है.मुझे उसकी यह बात पसंद आयी. अब मैं अपना अधिकतर समय लेटे लेटे बिताती हूं. चालिस की आयु के बाद मैंने स्वास्थ्य ठीक रख्ने के लिये कुछ उपाय किये हैं जो आज आप को बताना चाहती हूं. इस उम्र के बाद स्वास्थ्य पर विषेश ध्यान ज़रूरी है नहीं तो हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी बीमारियां घेर लेती हैं.

मैं बचपन से बडी खिलन्डरी और चंचल रही हूं लेकिन अब चलना फिरना कम कर दिया है. शापिंग नौकर से करवाती हूं या फिर इन्हें भेज देती हूं. खाद्य पदार्थों में मिलावट के कारण अब हड्डियों में वह जान नहीं रही जो पहले हुआ करती थी. आस्टियोपोरोसिस की वजह से हड्डियां कमज़ोर होकर जल्दी टूट जाती हैं.

इस उम्र में यात्रा तो बिलकुल भी नहीं करनी चाहिये. अखबारों में दुर्घटनाओं के समाचार पढ़कर जान निकल जाती है:

घोड़ा गाडी गधे से टकरा गई, एक मरा दस घायल.

ट्रेन पटरी से उतरी कोई घायल नहीं हुआ.

एक दुर्घटना ही क्या आदमी की जान लेने के सैंकडों बहाने हैं. भीड़ भाड़ वाले स्थान पर बम फट गया, घर में गैस स्लिन्डर फट गया, बाथरूम में फिसल पडे, बस में बिजली का करंट दौड़ गया. इसी बहाने पब्लिक कम हो रही है और नाम परिवार नियोजन का हो रहा है.

कल मेरे पास कुछ सोशल वर्कर आये थे. जब मैं कालेज में थी तो सोशल वर्क मेरी विषेश रूचि थी. लोगों की बडी सेवा की लेकिन अब सब छोड़ दिया है. वह लोग स्कूल के गरीब बच्चों के लिये चंदा मांगने आये थे. मुझे भी इस अभियान में साथ लेजाना चाहते थे. मैने पूछा वह स्कूल कैसा है, वहां बच्चों को क्या पढाया जाता है ? यह सुनकर वे सब खी खी कर हंसने लगे. उनमें से जो सबसे बडी उम्र का था बराम्दे में खैनी की बदबूदार पिचकारी मार कर बोला "मैडम हम देश भक्ति की शिक्षा देते हैं. बच्चों को वंदे मात्‍रम् कहना सिखाते हैं.यही हमारा धर्म है, यही हमारा कर्म है."

मैंने कहा " अंग्रेज़ बिना वंदे मात्‍रम् कहे आधी दुनिया पर शासन कर गये. अमेरिका बिना वंदे मात्‍रम् के सारी दुनिया का चौधरी बना हुआ है. नये दौर में आप पीछे की ओर क्यों लौट रहे हैं ?"

उसने कहा "मैडम हमारे लिये तो दौर एक सा है, आपके लिये शायद बदल गया होगा. हम तो कल भी सेवक थे, आज भी सेवक हैं."

मैंने कहा "मैं आपके साथ नहीं चल सकती. मैं चालिस से ऊपर की हो चुकी हूं. उसने कहा "तो क्या हुआ ? मैं पचास साल का हूं, यह हमारे गुरू जी सत्तर साल के हैं. अब भी जवानों को लाठी चलाना सिखाते हैं. जब यह भाला घुमाते हैं तो जवान भी इनके सामने टिक नहीं पाते."

मैंने कहा "ज़रूर आपका ब्लड प्रेशर बढ़ गया होगा, पेशाब में शकर आती होगी. ब्लड में कोलेस्ट्राल खतरे के निशान को पार कर गया होगा...."

बोला "ऐसा तो नहीं है."

मैंने कहा "चेकअप क्रराइए तो पता चलेगा."

कहने लगा "चेकअप कराने से क्या फायदा ? जब तक जान है देश सेवा में लगा दूं. शरीर तो एक दिन नष्‍ट हो जायेगा."

मैंने कहा "यह शरीर आपको इसलिये नहीं दिया गया है कि आप इसे ज़बर्दस्ती नष्‍ट करदें. यह जीना भी कोई जीना है कि घुटनों का दर्द परेशान करता हो, गुर्दे में पथरी हो, दिल का दौरा पड़ने का धड़का हर समय लगा रहता हो....."

वह बोला "आप इतनी मोटी क्यों हैं. आप को दिल का दौरा पड़ सकता है. अगर आप ऐसे ही मोटी होती रहीं तो आप की हड्डियां शरीर का बोझ संभाल नहीं सकेंगी और टूट जाएंगी. आप योग करने लगें बडा फायदा होगा."

वे लोग यह कहकर चले गये. मैंने उनकी बातों पर फिर से विचार किया. शाम को जब मैं बिस्तर से उठने लगी तो मुझे पैर की हड्डी चरमराती हुई सी लगी........शायद वह टूट ही जाती, अगर मैं बिस्तर पर जल्दी से लेट न जाती...... उसने सच कहा था !

अब मैं योग करने के बारे में सोच रही हूं. मैंने योग पर एक अच्छी किताब मंगवा ली है और लेटे लेटे उसे पढ़ डाला है. योग के आसन भी इतने कठिन हैं कि उनके करने से अच्छे भले आदमी से पेट में बल पड़ जाएंगे या फिर हड्डियां दोहरी होकर टूट जाएंगी. योग के फायदे देखते हुए मैं यह सब कठिनाइयां भी उठाऊंगी. मुझे योग का सबसे अच्छा आसन शव-आसन लगा वही करने के बारे में सोच रही हूं.....!

Monday, November 22, 2010

व्यस्तता

(1)

रात की तनहाई में
अपने ही मोबाइल पर
अपना नम्बर डायल करता हूं
आवाज़ आती है
"डायल किया गया नम्बर व्यस्त है,
थोड़ी देर बाद डायल करें"
मैं सोचता हूं
मेरे मोबाइल पर
इतनी रात गये
कौन बातें करता है ?

(2)

टेलीफ़ोन खराब है
रिंग करने वाले को
फ़ाल्स बेल सुनाई पड़ती है
वह सोचता है
कोई उठाता क्यों नहीं है
शायद व्यस्त है !

(3)

आप वयस्त हैं
काम से उकताये हुए हैं
बास पर झल्लाये हुए हैं
आफ़िस के बाहर
रेड लाइट है
चपरासी को सख्त हिदायत है
कोई अन्दर न आने पाये
अचानक !
टेलीफ़ोन की घन्टी बजती है
आप फ़ोन उठाते हैं
और ज़्यादा व्यस्त हो जाते हैं

Friday, November 12, 2010

धरती के लाल याद है तुम्हें ?

धरती के लाल !
याद है तुम्हें ?
हलागू और चंगेज़
सिकन्दर की उमड़ती फ़ौजें
तातारी बेलगाम घोड़े
मंगोलों के हमले
जिन्होंने सभ्याताऒं की
ईंट से ईंट बजा दी.

दिल्ली लुटी कई बार
कभी नादिर शाही कत्ले आम
कभी तैमूर की चढ़ाई
मराठों के हमले
गोरों की हुकूमत
1857 की क्रान्ति
दिल्ली की घेराबन्दी
आखरी मुग़ल का खात्मा

पहला विश्‍व युद्ध
बमों की बरसात
दूसरा विश्‍व युद्ध
हीरोशिमा और नागासाकी
फिर उठे मानवता के ठेकेदार
अब जंग न होने देंगे
इन्सानियत को बेवजह
शर्मसार न होने देंगे

दुनिया दो शक्‍तियों के घेरे में
अमेरिका और रूस
शीत युद्ध, जासूसी, प्रोपेगन्डा
रूस का बिखराव
दुनिया एक शक्‍ति की मुठ्ठी में
काले नकाब पोश चेहरे
आतंकवाद का साया
ट्विन टावर की तबाही

बिखरती मानवता की परछाईं
अफ़गानिस्तान के घाव
कैमिकत हथयारों की खोज
इराक़ का बिखराव
भूख से बिलखते बच्चे
मानवता का उपहास
ग्वान्टेनामो की कहानी
टार्चर का नया इतिहास

धरती के लाल
इन सबसे बेपरवाह
तुम अपने काम में लगे रहे
कारखानों में मशीनों पर
खेतों में, सडकों पर
तुम्हारे दो हाथ ही काम आते हैं
दुनिया को रोटी ही नहीं देते
इसे खूबसूरत भी बनाते हैं

धरती के लाल
हर बार तुम्हीं निशाना बने
ज़ुल्म करने वाले
हलागू या चंगेज़ हों
य़ा हिटलर और मसोलिनी
लाल सिपाही
मानवता के ठेकेदार
या बे चेहरा शक्‍तियां

कभी आतंकवाद के नाम पर
क्भी इन्सानियत के नाम पर
तुम्हीं क्यों पीसे जाते हो ?
धरती के लाल ??

Tuesday, November 2, 2010

न रहेगा आम, न कूकेगी कोयल

चच्चा बोले नवाब खशखशी के पास ग्रामोफ़ोन था जिस में रिकार्ड लगाकर वह गाने सुना करते थे.

नवाब खशखशी पुराने गानों के शौक़ीन थे. जब गाना सुनने बैठते थे क्या मजाल जो कोई ज़रा भी डिस्टर्ब कर दे. एक दिन बाग़ मे बैठे उस्ताद विलायत खां से पक्का गाना सुन रहे थे कि कोयल ने कूक मारी. उस्ताद विलायत खां पर उसका ऐसा असर हुआ कि गाना बन्द कर दिया और नवाब साहब से हाथ जोडकर कहा कि अब मुझ से नहीं गाया जायेगा.

नवाब ने पूछा क्यों ?

उस्ताद बोले कोयल की आवाज़ सुनकर मेरा गला रुन्ध गया है. एक पुरानी कहानी याद आ गयी है, एक कसक सी सीने में उठी है और एक आग है कि दिल को जला रही है.

नवाब के चेहरे पर कई रंग आये और गये. गुस्से से कांपने लगे. जब कांप चुके तो हांफने लगे. बोले एक ज़रा से परिन्दे की यह मजाल कि उस्ताद विलायत खां को पक्का गाना गाने से रोक दे. फ़ौरन बहेलिये को बुलवाया और कोयल को पकड़वा दिया. कुछ दिन बाद जब नवाब साहब को खबर मिली कि आम के बाग़ में कोयलों ने शोर मचा रक्खा है तो बाग़ कटवा कर बबूल का जंगल लगवा दिया कि न रहेगा आम, न कूकेगी कोयल !

चच्चा बोले वह दिन अब कहां. नवाब खशखशी चले गये उनके पोते अब चूना बेचते हैं और मोबाइल से गाने सुनते हैं. कल मैं टी वी देख रहा था. अच्छा प्रोग्राम चल रहा था लेकिन बीच बीच में सिलसिला टूट जाता था. साबुन, चाय, तेल, बेचने वाले, बिना भूख पिज़्ज़ा बर्गर खाने की सलाह देने वाले बिन बुलाये मेहमान की तरह घर में घुस पड़ते थे. यह सब देखकर मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा. मैंने सोचा न हुये नवाब साहब... तोड़ देते टी वी और फोड़ देते ऊपर लगी छतरी.....

कमाल की बात है, हम अपना पैसा दें. डिश वालों की जेबें भरें और ऊपर से अनचाहे एडवर्टाइज़मेन्ट झेलें. यह तो वही बात हुई कि हमारी बिल्ली हमीं से मियाऊं. टी वी वालों ने अच्छा धंधा चलाया है. अब बहुत हो चुका या तो हमें फ़्री टी वी दिखओ हम प्रोग्राम के साथ एड भी पचा जाएंगे और डकार भी नहीं लेंगे. पेड चैनल में एड नहीं होना चाहिए.

दिन भर के थके हारे, टेंशन से चूर, ब्लड प्रेशर के मरीज़, ज़माने के सताये हुए रात को जब टी वी का सहारा लें कोई अच्छा प्रोग्राम देखना चाहें तो आप हमें कड़वी दवा की तरह धकाधक एड पर एड पिलाने लगें !

यह क्या बात हुई ? चच्चा मुझसे सवाल पूछ रहे थे.

मैने कहा पहले टी वी फ़्री दिखाया जाता था. चैनल अपना खर्च और मुनाफ़ा एड से पूरा करते थे. जब टी वी कमर्शियालाइज़ हुआ, चैनल्ज़ का बुके बनाकर ग्राहक से पैसा लेना शुरू किया तो एड भी साथ ही चलने लगे जैसे फ़्री टी वी में चलते थे. टी वी के ग्राहकों ने कभी नहीं सोचा कि जब हम पैसा दे रहे हैं तो एड क्यों देखें.

यह सुनकर चच्चा गहरी सोच में डूब गये.